Friday, June 28, 2013

Meri Wo Chidiya...


मेरे  आँगन की वो चिड़िया जो खुल के चहचहाती थी
आज-कल कुछ गुमसुम, सहमी सी रहती है

अपने हि मीठे बोलों को सवालों सा तकती है
हर भोर के साथ अतीत मे भटकती है

दुनिया के रिवाज़ों से कुफ्र सी नज़र आती है
ख्वाहिशों के खँडहर से कुछ तिनके चुनती है

जो कभी खुले आसमां मे लगाती थी गोते
दर्द के दरिया मे डूबती दिखती है

मस्त-मौला, बकलोल मेरी वो चिड़िया
भावनाओं के बवंडर से लडती है

कुछ रोती है, कुछ बिलखती है
अपने अरमानों को तजती है
सवालों के समंदर से निकलती है

जज्बातों के पिंजरे को तोड़ कर
सिर्फ, इंसानों से मिलने से बचती है

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